डॉ सतीश राज पुष्करणा
1
हमारा गाँव
न जहाँ एक नदी
न कोई नाव ।
2
कैसा वक़्त है !
कुत्ता खा रहा रोटी
आदमी बोटी
3
रौशन हुए
मकाँ को जब देखा
लगा-घर है ।
4
बूढ़ी दादी
आज भी पहचान
पूरे गाँव की ।
5
नींद आएगी
आँधियों को तकिया
बना लीजिए ।
6-
राह में काँटे
हों कि फूल ,हमें तो
चलना है ।
7
नींद आएगी
आँधियों को तक़िया
बना लीजिए।
8
हरहराती
नदी है या तुम्हारी
ये मुक्त हँसी ।
9
दु:ख होता है
आता है जब वह
बुढ़ापे जैसा
10
आई है रात
चलो! मिलके करें
दिन की बात ।
11
हँसो ऐ दोस्त !
रोने से रात छोटी
नहीं होती है ।
12
हल्की समझ
जो खोली चिट्ठी,दिल
भारी हो गया ।
13
बचपन को
छोड़,सीधा जवान
हो रहे बच्चे ।
14
धोखा न देते
पेड़ कभी, आज के
बेटों के जैसा।
-‘बूँद-बूँद रोशनी’-(506 हाइकु )संग्रह से
15
खुशी न दी हो
कुछ दु:ख ज़रूर
बाँटे हमने ।
16
प्रेम देकर
तेरे पास बचा क्या ?
जो मैं माँग लूँ !
17
तेरी यादों के
सूर्य से हर रात
कट जाएगी ।
18
ख़त्म हुए हैं
बचे-खुचे रिश्ते भी
सच जो बोला ।
19
पानी काँपा
कोई प्यासा खड़ा है
नदी-तट पे ।
20
कटा जीवन
मिले कभी अपना
तलाश रही ।
21
मीठा पानी पी
समुद्र न बदला
खारा ही रहा ।
22
तेरी शक्ल में
चाँद उतर आया
मेरे दिल में ।
23
प्रकृति जैसे
दिल नहीं मानता
कोई भी सीमा ।
24
अनेक यादें
देके गया किसी के
पल का साथ ।
25
न हटे धूल
मन से , कैसे खिलें
मन के फूल ।
26
ज़िद न करें
हाथ न आने वाले
भागते पल ।
27
टकराते न
जहाँ कभी बर्तन
घर न होता ।
28
होंठ सिले हैं
तो क्या !आँखें खुली हैं
बोल ही देंगी ।
29
बाती -सी जली
हर दिन-रात को
हमारी माँ थी ।
30
हँसते देख
ऐसा लगा कि वह
बड़ा दुखी है ।
31
ऐसा होता है
आँखें भीगती मेरी
दु:ख किसी का ।
32
हर रिश्ते में
दु:ख ही सहती हैं
प्राय: बेटियाँ ।
33
लाड़ से पली
दहेज की आग में
बेटियाँ जली ।
34
मेरे आँगन
चिड़ियाँ कई आतीं
खुशियाँ लातीं ।
35
कच्चा घड़ा भी
हो गया नदी पार
सच्चा है प्यार ।
36
तट न मिला
डूब गए जो हम
उन आँखों में ।
37
मिटी थकान
देखकर बच्चे की
शुभ्र मुस्कान ।
-0-
[खोल दो खिड़कियाँ से ]
नमस्कार !
ReplyDeleteसम्मानिय सतीश जी , आप के ब्लॉग पे पहली बार आया हूँ मगर आप कि रचनाये अनेक ब्लोगों पे पढ़ी है . आप के हाइकू पसंद आये , साधुवाद ,
सादर
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