परिचर्चा
1-
लघुकथा के विकास में आज आप किसी प्रकार का अवरोध महसूस करते हैं या नहीं ?
अगर अवरोध हैं तो क्या -क्या हैं और उनका निराकरण क्या हो सकता है ?
2
आपकी रचना -प्रक्रिया में घटना कितनी महत्त्वपूर्ण है ।
3-
आज स्थापित रचनाकार समकालीन लेखकों की
रचनाओं पर चर्चा करने से बचते हैं। इस
प्रवृत्ति के बारे में आप क्या
कहना चाहेंगे ?
4-
कथाकार के रूप में आप जो कहना चाहते हैं, उसे लघुकथा विधा में सम्प्रेषित कर पाते हैं या नहीं ?
5-लघुकथा
के लिए भाषा की प्रमुख विशेषताएँ क्या होनी चाहिए ?
6-प्रमुख
लघुकथाकारों की अच्छी लघुकथाएँ बहुत कम
सामने आ रही हैं । उनका लेखन सीमित हो गया है । इसके क्या सम्भावित कारण हो सकते हैं ?
7-
लघुकथा के लिए नए विषयों की तलाश क्यों ज़रूरी हो गई है ?
8-कुछ
लेखक लघुकथा में मिथक का प्रयोग तो करते हैं ;
लेकिन उसका निर्वाह नहीं कर पाते । यह विवशता लघुकथा को किस प्रकार प्रभावित
करती है ?
9-
लघुकथा के सन्दर्भ में ‘हिन्दी लघुकथा’
का क्या भविष्य है ?
-0-
1-डॉ. सतीशराज पुष्करणा
1.निश्चित रूप से लघुकथा के विकास में अवरोध महसूस करता हूँ। सबसे बड़ा अवरोध
तो यह है कि कुछ पुराने लेखक स्वयं को बदलते समय के अनुसार नहीं ढाल पा रहे है।
कुछेक रचनाकार साथी प्रयोग भी कर रहे है तो वह इतने दुरुह हुए जा रहे हैं कि
पाठकों एवं स्वयं प्राय: लेखकों के सिर के ऊपर से गुज़र जा
रहे हैं । कई लेखक लघुकथा को आकार की दृष्टि से कहानी के निकट ही पहुँचा दे रहे
हैं। हमारे कुछ मित्र अब तो यह भी कहने लगे हैं कि कहानी और लघुकथा में कोई विशेष
अंतर नहीं ,किंचित मात्र है, नितांत
नहीं।
अब जरूरत इस बात की है कि जो लघुकथाएँ छप रही है, उन पर बिना हिचक या बिना व्यक्तिगत संबंधों पर विचार किए सही बात कहने का
साहस करना चाहिए। बदलते समय के साथ–साथ समयानुकूल विषयों को
भी लघुकथा का विषय बनाना चाहिए। नई पीढ़ी को अपने लेखों एवं समीक्षा के माध्यम से
लघुकथा के सत्य से अवगत कराते रहना चाहिए।
2.यह तो लिखी जाने वाली लघुकथा पर निर्भर है। लघुकथा में घटना महत्त्वपूर्ण
हो ही, यह अनिवार्य नहीं है। घटना प्रधान लघुकथा में
स्वाभाविक रूप से घटना महत्त्वपूर्ण हो जाती है ; किंतु जो लघुकथाएँ मनोवैज्ञानिक
सिद्धान्तों पर अन्य किसी भाव–विचार पर केन्द्रित होगी ,उनमें
घटना निश्चित रूप से महत्त्वपूर्ण नहीं होगी, वहाँ सिद्धान्त
महत्त्वपूर्ण हो जाएगा। यूँ भी घटना एक माध्यम होता है कथ्य और अभिव्यक्ति का,
अत प्रत्येक दृष्टिकोण से प्रत्येक
लघुकथा में कथ्य अपेक्षाकृत अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
3.यह सत्य है कि आज स्थापित रचनाकार समकालीन लेखकों की रचनाओं पर चर्चा करने से बचते हैं
क्योंकि वह स्वयं भी डरते हैं कि हमने समकालीनों की चर्चा कर दी तो कहीं ऐसा न हो
हम स्वयं पिछड़ जाए और जिसकी चर्चा करें ,वह उनसे यश के मामले में आगे बढ़ जाए।
दरअसल ऐसे लोगों को अपने लघुकथा–कर्म पर स्वयं विश्वास नहीं
है और जिन्हें विश्वास है वे समकालीनों की चर्चा दोनों तरह से करते हैं। यदि
रचनाएँ श्रेष्ठ लगी तो प्रशंसा भी करते हैं ,यदि सतही लगी तो कारण सहित उसे भी
लिखते हैं। समकालीनों की चर्चा करते समय पूर्वग्रह एवं दुराग्रहों से बचते हुए अपनी
बात ईमानदारी से कहनी/लिखनी चाहिए।
4.कथाकार जो कहना चाहता है वह सब लघुकथा में ही नहीं कह सकता । हर विधा के
साथ–साथ उसकी अपनी एक सीमा भी होती है, लघुकथा भी इस कथ्य का अपवाद नहीं है। लघुकथा एक लघु आकारीय विधा है ;अत:
वह क्षिप्र होती है, स्थूल से सूक्ष्म की यात्रा पूरी त्वरा
के साथ तय करती है। यही कारण है इस कथानक इकहरा होता है । इसमें तो कथाकार को
त्वरा से आगे बढ़ना होता है ; अत: वह सांकेतिकता से अधिक काम लेता है। मैं सब कुछ
लघुकथा विधा के माध्यम से नहीं कह पाता। अनेक विषय ऐसे मेरे सामने आए , जिनकी
अभिव्यक्ति हेतु मुझे कभी उपन्यास, तो कभी कहानी या आत्मकथा
को माध्यम बनाना पड़ा।
5. लघुकथा हेतु भाषा की सबसे प्रमुख विशेषता सांकेतिकता है। दूसरी- उसमें
मुहावरों,लोकोक्तियों तथा पात्रों के चरित्रानुकूल तथा
लघुकथा के कथानक के परिवेश के अनुसार देशज भाषा और क्षिप्रता का उपयोग
महत्त्वपूर्ण होता है। इन सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण यह है कि लघुकथा में विराम चिह्न
एवं डॉट-डॉट(…) भी सार्थक भूमिका का निर्वाह
करते है। बहुत सारी लघुकथाओं में वह बात भी पाठकों तक सम्प्रेषित हो जाती है , जो
लघुकथाकार कहना चाहता है और जिसके लिए उसने शब्दों का प्रयोग नहीं किया है ।
6.यह एक शाश्वत जीवन प्रक्रिया है। जो कल था वह आज नहीं है जो आज हैं वह कल
नहीं रहेगा। लघुकथाओं के साथ भी यही बात है। कुछ लेखक तो चुक गए हैं और इस संकोच
से नहीं लिख रहे कि वह शायद वे अपनी गरिमा के अनुकूल अब लघुकथाएँ न दे पाएँ। अच्छी
लघुकथाएँ कम सामने आ रही है, इसका स्पष्ट कारण अपने आपको आज
से न जोड़ पाना और अपने समकालीनों एवं नई पीढ़ी की लघुकथाओं से ईमानदारी एवं
गम्भीरता से न जुड़ पाना। इससे भी आगे
जाकर विचार करें जो सम्भावित कारण हो सकता है , वह है प्रमुख लघुकथाकारों में आपसी ईर्ष्या -भाव तथा परोक्ष
में एक दूसरे की निन्दा ; जो उन्हें कुंठित कर दे रही है।
7. लघुकथा के लिए नई विषयों की तलाश इसलिए जरूरी हो गई है ,ताकि इस विधा में टटकापन लाया जा सके, इसे भी अन्य महत्त्वपूर्ण विधाओं के समक्ष रखा जा सके ।लघुकथा के नये सम्भावित विषय हो सकते है–बाजारवाद, प्रदूषण, आतंकवाद,
नित्यप्रति हो रहे घोटाले,प्रांतवाद को
प्रोत्साहित करती जा रही घटनाएँ, इसके अतिरिक्त पात्रों के
मनोजगत को विश्लेषित करते विषय लघुकथा को टटकापन प्रदान करने में सक्षम हो सकते
है। इंटरनेट,रोबोट,मोबाइल इत्यादि
आधुनिक विज्ञान–विकास के क्षेत्र में लाभ के साथ–साथ हो रही सामाजिक हानि पर प्रकाश डालने वाले विषय भी महत्त्वपूर्ण हो सकते है।
8.अधिकतर लेखक लघुकथाओं में मिथकों का प्रयोग करते हैं परन्तु उसका निर्वाह
नहीं कर पाते। यह विवशता लघुकथा के स्तर को घटाती है। वस्तुत: मिथकों का प्रयोग
करने से पूर्व उपयोग किए जा रहे मिथक के विषय में सम्पूर्ण जानकारी होनी चाहिए।
विशेष रूप से उसके चरित्र के विषय में ।
साथ ही उस मिथक को वर्तमान संदर्भों में
सटीक ढंग से जोड़कर वांछित उद्देश्य तक
पहुँचने पहुँचाने की कला भी आनी चाहिए।
9.लघुकथा का भविष्य उज्ज्वल है कारण वर्तमान में हिन्दी के लेखक विश्व में जहाँ–
जहाँ भी हैं , वे लघुकथाएँ भी लिख रहे हैं। इसके अतिरिक्त लघुकथा डॉट कॉम जैसी इंटरनेट पत्रिकाएँ लघुकथा
के स्तर को पहचान देने में सफल है। संरचना जैसी पत्रिका वर्ष में एक ही बार प्रकाश
में आती है किन्तु वह भी लघुकथा के भविष्य को बनाने में महत्त्वपूर्ण निर्वाह कर
रही है। अन्य पत्र–पत्रिकाएँ भी लघुकथाएँ प्रकाशित कर रही
हैं जिनसे लघुकथा का भविष्य उज्ज्वल दिखाई देता है।
इतना
ही नहीं अनेक सम्पादित लघुकथा संग्रह तथा एकल लघुकथासंग्रहों के साथ–साथ लघुकथा आलोचना को पुष्ट करने वाली पुस्तकें भी प्रकाश में आ रही है। अनेक
विश्वविद्यालयों से इस विधा के विभिन्न विषयों में अनेक–अनेक
शोघ हो रहे है।
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आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 24 जुलाई 2021 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !