Friday, November 9, 2012

प्रभाती गाएँ


डॉ सतीश राज पुष्करणा
1
मौन जिसका
शब्दों में सज जाता
कवि धन्य हो जाता,
जिसको पढ़
हर आम -खास भी
सही दिशा पा जाता ।
2
होती है पूजा
जगती में उसकी
जो कुछ कर जाता ,
बनता वही
शिलालेख युग का
वो अमर हो पाता ।
3
नहीं एक ही
हों सब संचालक
अब इस सत्ता के ,
जनहित में
जो काम करें  नित
शासक वही बनें ।
4
काव्य-साधना
करे हर सर्जक
मानवता -हित में,
सारी धरती
हो सदा अनामय
बचे दानवता से ।
5
सुख बरसे
मिल करें वन्दना
हम अन्तर्मन से ,
सब हों सुखी
हर घर रौशन
महके चन्दन से ।
6
मिले चुनौती
भारत डट जाए
जब हुंकार भरे
दहल उठे
शत्रु  की छाती
दहलेगी, गाण्डीव
जब टंकार करे ।
7
जब झूमते
फूल, पल्लव, डाली
हवा साज बजाए
बने  पुजारी
तब पेड़ों पे पंछी
मिल प्रभाती गाएँ ।
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