Friday, November 9, 2012

रेत का घर


सतीश राज पुष्करणा 
1
क्या वे दिन थे !
सच कह पाते थे,
अब सज़ा है ।
2
यादों में आते
बगीचे हरे-भरे,
अब स्वप्न हैं।
3
गर्मी के दिन,
झुलस गए पाँव
याद है छाँव ।
4
तुम्हारी याद
जब-तब आकर
करती बात ।
5
अधर मौन
फिर भी हुई बात
आज भी याद ।
6
माँ की आवाज़-
मन्दिर की घण्टी-सा
पावन राग ।
7
कल का कुआँ
वहाँ आज देखता
पानी भी बिका !
8
गाँव के बीच
दादा -सा बरगद
यादों में बसा ।
9
भाई था भुजा
जाने से उसके मैं
अकेला हुआ ।
10
बुरे वक़्त में
मीत का छोड़ जाना
भूल न पाया ।
11
किताब खोली
सूखे फूलों मे दिखा
बीता यौवन ।
12
पाया न जिसे
वो पूनम का चाँद
आँखों में छाया ।
13
आँखें ढूँढ़तीं
जिसने बदल दी
मेरी ज़िन्दगी ।
14
रेत का घर
कभी तोड़ा , बनाया
भूल न पाया ।
-0-

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