Sunday, June 12, 2011

रचना श्रीवास्तव:अवधी हाइकु

:रूपान्तर- रचना श्रीवास्तव

      1
 
बईठी  कोना
 मिल जात छतरी 
 सोचत घाम
2
   दोपहरिया
  झरनवा  पियासा
   जेठवा बेला
3
बदरवा  मा
 मिलत न पनिया
  खूबै निचोड़ा
4
   तलैया सूखी
कटोरिया  मा पानी  
  पाखी  नहात
5
  गर्मी कै रात
 घूँघटवा मा चाँद
छज्जे आइस
6
 मर्तबान मा
  धरा आम आचार
धूप दिखावे 
7
  माई निकारे 
 हरियर कै धोती
  गर्मिया आई 
8
मजे से खाए
 बाल्टिया भर  आम
  लूगा के नास 
9
  डार पनिया  
 अंगना मा खटिया
  जेठ रतियाँ
10
  पंखा  डुलावे
माई सारी रतियाँ
बत्ती जे  गई
11
चैन से सोवे
अचरवा के छाँव
 माई जे  जागे
12
बड़का बक्सा
फिनायल के गोली
धरा स्वीटर
13

सूखी कोखिया
बीज मांगे पनिया
निकरन  को
14
मनवा भावे
छत पे डारा पानी 
उठे खुशबु
15
अमवा फूले
 चहके कोयलिया
  ऊ याद आये
16
कोयल कूके
 मनवा  भौरा  डोले
  नाही है ठौर
17
 खुदहीं तपे
सुरजवा जे डरे
  ढूंढे बदरा
18
पियवा साथे
गुनगुनी संझा मा
  घूमन नीक
19
दरस पावे
जरत धुपिया मा
ऊ छज्जे चढ़ी
20
तोहसे कहूँ
जराये  सपनवा
  गर्मी रतिया  
21
जेठ कै धूप
 लुकाय डेहरी मा  
  ढूढत छाँह
22
स्कुलिया  बंद
लरिका खुस बाटे
छुट्टी काटे
23
गन्ना  कै रस
अमवा बिकै ठेला
गर्मी जो आवे
24
 बाबा ते रोये
बहिर बेटयुआ
ठठ्ठा करे
25
माई  कोरवा
भूल , मेहररुआ
निकहि लागे
26
बिगड़ल ई 
नौजवान जे पीढ़ी
के समझावे 
27
फूहड़ गीत
बच्ची घर माँ गांवें
लजात बाबा
28
बुढ़िया  माई
बेटवन   पे भारी
मांगत भीख

29
तोहरे साथ
खुसी  बीती   जिन्नगी
लल्लू के बप्पा
30
 न  कौनो आस
बुढ़ापे कै साथ
बस पियार  
31
मरत चिता 
 उजड़त जंगल
चेतो मनुस्य
32
खूनहि खून
इहे बा इन्हां  हाल
रोअत प्रभु
33
मरत लोग 
खुदहीं  जहर से
तनिक सोचो
34
हारत बाप
खुदही कै जाये से
ई  कहे केसे
         -0        

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