Saturday, November 5, 2011

हाइकु-3


डॉ. भावना कुँअर, सिडनी आस्ट्रेलिया
शिक्षा: एम ए (हिन्दी -संस्कृत) , पी-एच डी,
सर्जन: कविता कहानी , हाइकु , ताँका और चोका में विशिष्ट सर्जन ।प्रकाशन: हाइकु-संग्रह (तारों की चूनर)और शोध-ग्रन्थ(साठोत्तरी गज़ल में विद्रोह के स्वर , चन्दनमन( हाइकु-संग्रह )का सम्पादन,4 पुस्तकें बच्चों के लिए सम्पादित, सम्पादकीय विभाग-हिन्दी गौरव मासिक(आस्ट्रेलिया)। हिन्दी ब्लॉग का कई वर्षों से संचालन
सम्प्रति: सिडनी यूनिवर्सिटी में हिन्दी -अध्यापन
1
वो मृग छौना
बहुत ही सलौना
कुलाचें भरे ।
2
सूरज बोला-
तपती धूप मुझे
ना यूँ झुलसा ।
3
नदियॉ गातीं
लहरों के साथ में
रास रचातीं।
4
सोच रही थी
चिलचिलाती धूप
हाँ मैं जाऊँ?
5
शामियाने -से
तने हुए बादल
बरसे नहीं।
6
सकुचाई -सी
लिपटती ही गई
लता पेड़ से।
7
लेटी थी धूप
सागर तट पर
प्यास बुझाने।
8
दुखी है पंछी
विस्तार है गगन
ज़ख्मी हैं पंख।
9
सीप से मोती
जैसे  झाँक रहा हो
नभ में चाँद।
10
नभ है झूला
तारे बच्चों का रेला
चाँद झुलाए ।
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