Saturday, November 5, 2011

ताँका-1

डॉ सतीशराज पुष्करणा
1
नदी न पीती
कभी अपना पानी
त्याग सिखाती
आगे बढ़ जाती है
समर्पित होने को
2
लोभ में फँसे
इस जग के लोग
सच न जानें
झूठ को अपनाएँ
बहुत पछताएँ
3
आत्मा का रिश्ता
सिर्फ़ परमात्मा से
शेष है माया
जिसके चक्कर में
ये जग भरमाया।
4
चिन्ता न मुझे
जीवित मेरी माँ है
फ़िक्र क्यों करूँ
कवच आशीर्वाद का
जब  है मेरे साथ
5
मानो न मानो
माँ कभी न मरती
ज़िन्दा रहती
एहसास के साथ
सदैव पास-पास
6
ठोकर लगी
गिरने से पहले
जिन्होंने थामा
और कुछ नहीं था
थे हाथ मेरी माँ के
7
स्वप्न में आई
आशीर्वाद दे गई
मुझे मेरी माँ
उठकर जो देखा
सुख के फूल खिले
8
रात में खिला
चाँद आसमान में
तेरा चेहरा
हँसते गुलाब -सा
नज़र आया मुझे
9
खुशी का पता
क्या उसको चलता
झेला ही नहीं
जिसने ग़म कभी
नश्वर जीवन में
10
दोस्ती में यारो
मारे गए हम तो
वरना क्या थी
मज़ाल ज़माने की
जो छू लेता हमको
11
अच्छा हो वक़्त
रात भी होती भली
वरन् क्या कहें
दिन भी चुभता है
सुइयों की तरह
12
दु:ख है छिपा
सुख के भीतर ही
कोई जाने न
मृगतृष्णा में खोए
आगे बढ़ते जाते
13
रात केवल
नहीं देती है तम
देती जन्म ये
उजले सूरज को
नए जीवन हेतु
14
दोनों के बीच
आ गया जो तीसरा
बात बिगड़ी
फिर नहीं सँभली
जीवन में कभी भी
15
तुम नहीं थे
फिर भी न जाने क्यों
खुली आँखों में
दिखाई दिए तुम
जगह -जगह पे
-0-

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